मंगलवार, 12 सितंबर 2023

मेरी जान

बात कुछ खास बड़ी नहीं होती है।
रूह मेरी दूर खामोश खड़ी होती है।
हर खता मेरी आंखों में पढ़ लेती है।
वो बढ़ी आंखों से मेरी खबर लेती है।

आंखों में रंगीनियत ऐसी कि,
सारे नगीने फीके पड़ जाएं।
उसमें थी रूहानियत ऐसी कि,
फरिश्ते भी पीछे पड़ जाएं।

गलतियों पर चुप रहती है।
आंसुओं से तड़प जाता हूँ।
कहीं बोलना बंद न कर दे।
मैं सोच कर घबरा जाता हूँ।

आंखें उसकी अलख जगा देती है।
मुझे जीने की वजह बता देती है।
मैं जब कभी वादे तोड़ देता हूँ।
प्यार भरे ताने दे के सजा देती है।

मैं बदमिजाज बेअदब हूँ।
वो बामुलाहिजा बाअदब है।
मैं नफ़रत से भरा पड़ा हूँ।
वो मोहब्बत से लबा लब है।


शुक्रवार, 3 मार्च 2023

सरहज संग फगुआ

दईद सार के खलमुसर,सिल बट्टा,
पिसञs माल़ मसाला, भांगे क पत्ता,
चलs दुनऊ संघवा खेली फगुआ,
ए काल कचरहीं कुल कपड़ा लत्ता।

बता द मसाला तेल कहा बा,
न मिल्ई त, खोजञ का कहा बा 
आव तू हम खेली फगुआ,
बिसर जाई आज, के कहां बा।

ए तलई समोसा, कचरी,भजिया,
तू रसभंगा संघे ल नमकिनिया,
आव होई जाए खेल खेलनिया,
तोहईय लगाई अबीर बुकनिया।

सरऊ से घोंटवायी भंगिया,
फिर पिसवाई चटनी धनिया,
दे दना दन तू हम खेली फगुआ
छानी रसभंगा, चाट चटनियां।

अउर ऐ करेजा, तोहई बदे बा!

सुतारे लगवा ल रंग रंगनिया,
ढेर जिन नाच! नाच नचनिया,
ना त मुर्चा जाई कमर कलईयां,
हम बनी फगुआ, तू बनs फगुनिया।














शुक्रवार, 27 जनवरी 2023

Ae Rahi

Ae Raahi tu jab chale Sadak par,
Dost milenge tujhe har pag par,
Na ummidi ka bojh rakh jami par,
Tu bas aitbaar kar har dost par.

Ae Raahi tu jab chale sadak par,
Milna Bichadna dastoor tera,
Aansoo poch dekh Dagar par,
Kismat fir milayegi sabse Manjil par,

Ae Raahi tu chale jab sadak par,
Jab kabhi ladkhadaye,
Na tike haath jab kisi Hum safar par,
Utha khada ho dekh Falak par,

Uthna hai tujhe Uss  se bhi upar, 
yehi mukaam rakh Jahan me,

Ae Raahi jab tu chale Sadak par....

DEDICATED TO ALL MY BEST BUDDIES 

#TJ

शनिवार, 24 सितंबर 2022

मप्रेक श्रंखला: और फिर प्यार हो गया

अंक-1) गुलाल इश्क़
मेरी ये दूसरी ही पोस्टिंग थी।पूरा दिन धूल-धक्कड़ से भरे, मुम्बई के ट्रैफिक से ठसाठस चौराहे पर खड़े खड़े निकल जाता है। इतने नियम कायदे के बावजूद लोग बाज नहीं आते है। आज काफी चालान काटे, लोगों से बहस भी हुई। लोग पहले तो नियम तोड़ते हैं, फिर बहस करते हैं। आने वाले त्योहारों के सीजन की वजह से कल पुलिस लाइन में सबको प्लानिंग के लिए सुबह 7 बजे बुलाया था। 
सुबह सात बजे से आये आये शाम के चार बजे छुटे। विसर्जन में ड्यूटी लगी थी। 
6 बजे सुबह से ही तैनाती के आर्डर हो गए थे। घाट पर सुबह से ही लोगों की आवाजाही शुरू हो गयी थी। सुबह से अधिकतर परिवार वाले आ रहे थे क्योंकि शाम को गर्दी बहुत हो जाएगी। शादीशुदा जोड़े बहुत दिखे, शायद इन जोड़ों का पहला गणेश विसर्जन साथ में था। सभी बहुत खुश थे।
शाम होते होते पंडालों के जत्थे आना चालू हो गए। भारी भीड़ में पैर रखने तक कि जगह नहीं थी। ढोल नगाड़ों का जबरदस्त शोर था। झांकिया देखते ही बनती थी। एक मिनी ट्रक रोड पर रोंग साइड से आ गया था। उसे पास करवाने में मेरे पसीने छूट गए, ड्राइवर से बहस भी हो ही रही थी कि मेरे मुंह पर गुलाल का गुब्बार आया। आंखे बंद हो गयी। सामने एक लड़का बुरी तरह नाच रहा था। समझ में ही नहीं आ रहा था किसने किया। अगर आम दिन होता तो हड्डी तोड़ देती। जब आंखे कुछ साफ हुई तो वो लड़का सामने से गायब था। सब लड़के मेरे पर हंस रहे थे, कसम से गुस्सा तो पूरा आ रहा था,क्या करती आखिर।
मेरा पूरा चेहरा, पूरी वर्दी लाल गुलाल से भर गई थी। क्या करती उस हालत में ड्यूटी की। रात के 1 बजे रूम पर पहुंची।फिर अगले दिन से वही चौराहा वही गाड़ियां। 
दीवाली के दिन पास थे। खरीदारी का माहौल था नो एंट्री, नो पार्किंग पर लोगों से बहस। एक अंकल का चालान काट रही थी। तभी सड़क के दूसरी तरफ मेरा ध्यान गया कोई लड़का बस स्टैंड पर पीठ पर लैपटॉप बैग, कान पर बड़े बड़े हैडफोन लगाये हट्टा कट्टा शरीर, घुंगराले बाल लिये। मेरी तरफ देखते हुए अपनी मस्ती में मस्त नाच रहा था। जैसे आज भी विसर्जन पर जा रहा हो। ज्यादा ध्यान न देकर अपने काम मे लग गयी। पर एक मिनेट मेरे दिमाग में कुछ ठनका। गुलाल का गुब्बार सामने वो लड़का। अरे ये तो वही है। आज नहीं बचेगा। मैं फिर से मुड़ी और बस स्टैंड पर बस आ गयी थी। अंकल की गाड़ी की RC मेरे ही पास थी बिना वापिस दिए बस स्टैंड की तरफ भागी। अंकल मेरे पीछे पीछे भागे। जैसे बस स्टैंड तक पहुंची बस निकल पड़ीं। वहां कोई नहीं था। मैं  बस की तरफ देख ही रही थी हाँफते हाँफते की, खिड़की से बाहर एक हाथ आया। जो मुझे बाये कर रहा था। 
ये तो पक्का हो गया कि ये वो ही था। इतने में अंकल पीछे से बेटा जी वो तो गया अब मुझे भी छोड़ दो। और मैं अंकल की तरफ मुड़ीं और कहा अंकल अब नंबर प्लेट का भी कटेगा। टूटी हुई है।
पीछे दो तीन महीने में ऐसा 3-4 बार हुआ। नालायक बस स्टैंड के उस तरफ मुझे देख के नाचता और जब तक मैं पहुँचूँ भाग जाए। कपड़ों से डील डौल से अच्छे घर का लगता था, काला चश्मा, जींस टी-शर्ट, मुंह पर हमेशा मास्क। 
अब तो मैंने भी नजरअंदाज करना शुरू कर दिया था। मुझे लगा पागल है। जब वो ऐसी बेवकूफी करता तो मैं ध्यान ही नहीं देती। एक बार उसका जिक्र अपनी एक दोस्त से किया और बोला जिस दिन हाथ लगेगा, पिटेगा बहुत। पर फिर वो बोली क्या बोल के मारेगी? तू नाच रहा था! नाचना कोई गुनाह है। फिर मैं बोली अरे इसी ने गणेश विसर्जन पर....
 मेरी दोस्त मुझे रोकते हुए अरे छोड़ न कोई होगा, कभी तेरे पास तो नहीं आ कर उसने कुछ कमेंट किया?
मैंने कहा आकर तो देखे, फिर मेरे को तू तो जानती ही है।
एयरपोर्ट पर VIP मूवमेंट था। कई एजंसियां थी, वहां खाना पूर्ति के लिए पुलिस सिक्योरिटी बूथ पर ड्यूटी थी। ठीक एंट्री गेट के पास, कुछ दोस्त अपने किसी जिगरी को छोड़ने आये होंगे। आपस मे कंधा मिला कर बेचारे एक दोस्त को विदा कर रहे थे। मेरा ध्यान मेरे वाकी टोकी पर था कि अजीब सा शोर हुआ। गधे की तरह नाचने लगे इतने उनके बीच में मेरी नजर गयी तो वही गधा था, जिसे छोड़ने आये थे सारे के सारे। इतने में CISF वाले आये और उन लोगों को डाटा। और नाटकबाज ऐसे जा रहा था जैसे उसकी माईके से विदाई हो। मैंने भी सोचा अच्छा है गया कमीना। जब देखो बस स्टैंड पर खड़ा हो कर खून जलाता था।
पर तभी कांच के उस तरफ क्या देखती हूँ गधा मेरी तरफ देख रहा था, और फिर टपोरी डांस चालू। मेरी इस बार हंसी छूट गयी उसके पागलपन पर। ये देख कर हवा में ऐसे उछला जैसे मैडल जीत लिया हो और किसी फोजी की तरह मुझे सल्यूट किया और मार्च करता हुआ चेक इन की तरफ चल गया, कसम से कार्टून था। इस बार में देखती ही रह गयी जब वो जा रहा था। एक गुस्सा था जो उस पर फूट नहीं पाया और अंदर से एक सुगबुगाहट थी कि था कौन ये? जो आज मुझे सालों बाद हंसा कर चला गया। मेरे सामने वही गुलाल का गुब्बार और वो धूंधला से चेहरा आ गया।
दिन बीते चौराहे पर ड्यूटी चल रही थी। पता नहीं क्यों बस स्टैंड पर नजर चली ही जाती थी। एक दिन कुछ लड़कों को देखा ये तो वही थे उसके दोस्त। सोचा पूंछू कहाँ है नालायक।फिर शर्मा गयी कि ऐसे कैसे पूंछ लू, जानती थोड़े ही हूँ। था तो आखिर अंजान ही।
एके दिन मैंने अपने कॉन्स्टेबल को बोला कि जरा उनमें से एक लड़के को बुला कर ले आ। वो गया और एक लड़का साथ आया। मन पता नहीं क्यों उत्सुक था। पर फिर मैंने नॉर्मली उससे पूछा क्यों तुम लोगों के ग्रुप का वो जोकर कहाँ है?
वो पहले तो खिलखिला के हंसा फिर बोला अरे मैडम वो मन्घेश? मैंने कहा नाम नहीं मालूम पर जो पागलों की तरह कभी भी नाचने लगता था। अभी तो वो सिंगापुर गया हुआ है। अपने किसी एप्प का डेमो देने के लिए इन्वेस्टर्स के पास, अगर सब कुछ ठीक रहा तो अब वहीं रहेगा। 
मेरे चेहरे पर मिले जुले भाव थे। मैं सोच रही थी मुझे इस बात का गम क्यों हो रहा है।
फिर दिन बीते वही रूटीन, एक दिन उस ग्रुप में से जोकर का दोस्त भागते हुए मेरे पास आया, परेशान था। मैंने खुद पूछा क्या हुआ? वो परेशान हो कर बोला मैडम वो मन्घेश!
मेरी और घबराहट से आँखें फटी जा रही थी। मैंने फिर पूछा हाँ हाँ क्या हुआ? वो बोला, मैडम कल एक गली के कुत्ते को बचाते हुए उसकी जान चली गयी। मुझे बड़ा ही दुख हुआ। मन तो ये हुआ कि रो दूं। पर खुद को कंट्रोल किया। फिर सोचा 1 मिनट गली के कुत्ते के लिए जान कौन देता है। फिर मन में आया कि था आधा पागल ही, कर भी सकता था। पूरा दिन काम में मन नहीं लगा। रात को कुछ खाया नहीं उसकी हरकतें सामने घूम रही थी। बेड पर लेटी ही थी कि आंखों से आँसू आ गए। 
मैं दुखी होने से ज्यादा दंग थी आखिर ये कौन था जो इतने सालों बाद हंसा कर, फिर रुला कर चला गया। मेरी नौकरी लगे दो साल ही हुए। कॉलेज की पढ़ाई, एग्जाम की तैयारी, और घर की सबसे बड़ी बेटी होने के कारण जिम्मेदारियों के बोझ ने भावशून्य कर दिया था। हंसना, रोना, गुस्सा होना, सब भूल गयी थी। पर इतने सालों बाद इतने कम समय मे अपने अंदर इतनी भावनाओं का समंदर एक साथ उमड़ते देख में मैं दंग थी।
अगले दिन फिर ड्यूटी पर लेट हो गयी। चौराहे पर बिना हेलमेट के एक लड़की से हवलदार से बहस कर रही थी। उसके पास गई और लड़की को बहुत जोर से डाटा वो डर गई और हवलदार भी सन्न रह गया। मैं कभी किसी से ऐसे बात नहीं करती थी।
वो लड़कों का ग्रुप में से मुझे वो कल वाला लड़का फ़िर दिखाई दिया। मैं न चाह कर भी उसके पास गई। उस से पूछा उसके बारे में, कौन था, कहाँ रहता था। घर में कौन कौन था?
वो बोला, इस दुनिया में दोस्तों के अलावा उसका कोई नहीं था। किसी मिशनरी में पला बढ़ा और पढ़ा हुआ था। उसने बताया एक दोस्त के यहां हम लोग उसके लिए इक्कठे हो रहें हैं। मैंने इस बार नजरें उठा कर बहुत ध्यान से सुना। एक बार देखना था, आखिर वो था कौन!
अगले दिन मैं उस लड़के की बतायी हुई जगह पर पहुँच गयी।
मैंने पहली बार देखा उसका चेहरा, गेंहुआ रंग, भूरी आंखें, मनमोह लेने वाली मुस्कान, उसके चेहरे से बिल्कुल नहीं लगता था कि इतना शैतान था वो। बिल्कुल भोले भाले बच्चे जैसी मासूमियत थी। मैं बेकार ही चिढ़ती थी। ये ही कोई 8-9 लोग रहे होंगे। एक लड़के ने गिटार ले रखा था। एक माइक और एक साउंड स्पीकर उस हॉल कमरे में रखा हुआ था। जिस लड़के ने एड्रेस दिया था। उसने मन्घेश के बारे में बताना चालू किया। वो अनाथ था, उसने अपनी मेहनत के दम पर किसी कॉलेज से CSIT में बीटेक किया था। अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए अखबार बेचने से लेकर वेटर तक का काम किया।
फिर उसके गिटार वाले दोस्त ने एक लड़की के साथ मंगेश के मन पसंद गाने गाए।
फिर एक और दोस्त उठा उसने बताया वो कि मन्घेश किसी को चाहता था। पता नही क्यों पर उसके बारे में मैं सुन ना चाहती थी।
मन्घेश बोलता था कि भाई जब भी उसको देखता हूँ तो मन करता था कि नाचने लगूं। 
ये बात सुन कर तो मेरी आंखे आंसूं नहीं थाम पाए मैंने अपने सनग्लास पहन लिए और मौन धारण के लिए सबके साथ खड़ी हो गयी।
तभी उसकी रिकॉर्ड की हुई आवाज़ उसके दोस्तों ने प्ले की। 
वो बोल रहा था। जिसने जिंदगी में सबसे अधिक दुख उठाये होंगे वो जब मेहनत करके सुख भोगता है तो उसे उसका मजा उस व्यक्ति से भी ज्यादा आता है जो पहले से सूखी है। ज़िन्दगी का काम ही है आपके सामने परेशानी की दीवार खड़ा करना, पर भगवान ने इसलिए इंसान को इतना शातिर बनाया है। ताकि वो ज़िन्दगी को बेवकूफ बना सके।
और तुम ! सब की आँखे खुल गयी।
सब एक दूसरे को देखने लगे। 
फिर आवाज आई मुझे पता था तुम जरूर आओगी। मेरी किसी बात का बुरा मत मानना। पता नहीं क्यों तुम्हें देख कर दिल करता था नाच उठूँ। तुम्हें देख कर लगता था कि अगर तुम्हें पा लिया तो ज़िन्दगी का अधूरापन, अँधेरापन सब दूर हो जाएगा....
पर हिम्मत नहीं थी कभी तुम्हारे पास आने की। डरता था ज़िन्दगी में कभी कुछ अच्छा नहीं हुआ। तो अब क्या होगा।पर शायद प्यार एकतरफा है तो वो ही सही,कहीं से तो है। मैं बस उसे ही पल पल एन्जॉय कर रहा था। झूमने लगता था उसी ढ़ोल-नगाड़े की आवाज पर......तुम्हें नाउवारी साड़ी में सजा देख कर।
मेरी आँखें बंद हो गयी थी। मैंने बड़ी जोर से अपनी आंखों को दबाया था। ताकि आँसूं की आखरी बूंद भी बह जाये और मैं यह से जा सकूँ। मेरा दिल बैठा जा रहा था।
तभी ढ़ोल नगाड़े का वही विसर्जन वाला म्यूजिक हॉल में गूंज उठा। उसके दोस्तों ने जेबों से गुलाल लिया और हवा में उड़ाना चालू कर दिया । पूरा हॉल भर गया था। कुछ नहीं नजर आ रहा था। मैं दंग थी,सोच रही ये थी ये सब उसकी तरह पागल हैं क्या! आखिर शोकसभा में ऐसा कौन करता है। हॉल में गुलाल का धुआं कुछ हल्का हुआ मेरी आँखें फटी की फटी रह गयी, मेरा दिल बहुत ज़ोर से धड़क रहा था। वही विसर्जन वाला चेहरा मेरे चेहरे पर फिर उसने गुलाल फेंकना चाहा और मैंने उसे रोका नहीं। उस गुलाल के ओझलके में मैंने उस लड़के को बाहें फेलाये देखा। 
बिना देर किये मैं उन बाहों में सिमट गई और फिर प्यार हो गया उस लड़के से।



अंक- 2  कॉलेज का प्यार

गजब की खूबसूरती थी कॉलेज की। गांव से निकले लड़के के लिये इस से बड़ा पड़ाव क्या हो सकता था। तीसरी काउंसिलिंग के बाद इस कॉलेज में अपनी स्ट्रीम मिली थी। अपने पहनावे की वजह से खुद को काफी पिछड़ा हुआ समझ रहा था। जीन्स के जमाने में टी शर्ट और पेंट के नीचे ऑफिस वाले बूट कौन पहनता था। हाथ में बिना व्हील वाला भारी से बैग। आस पास के अमीर खानसामे ऐसे देख रहे थे जैसे कोई आदिमानव देख लिया हो। लज्जित तो बहुत था खुद पर। लेकिन क्या करता, एक किसान ने अपने बेटे को शहर के कॉलेज में दाखिला दिलवा दिया यही बहुत था।
होस्टल रूम बुकिंग क्लर्क के यहाँ से वार्डन के दफ्तर पहुंचा। मुझे वार्डेन ने भी ऊपर से नीचे तक देखा। अपने सामने बैठने को बोला और होस्टल फीस की पर्ची मांगी। एंट्री करते करते मेरा पूरा बॉयोडाटा ले डाला। रूम नम्बर 203 दिया।
मेरे जाते हुए बोले, रूल्स फॉलो करना नहीं तो बाहर कर दिए जाओगे। कुछ रुक कर बोले - एक बात और याद रखना, कभी किसी के कहने पर अपनी सादगी मत खोना। मैं बिना कुछ कहे हाँ में सिर हिला के निकल गया। रास्ते में एक बन्दा भागता हुआ आया और मुझसे जोर से टकराया। मुझे डांटते हुए बोला देख कर नहीं चल सकता क्या, और फिर भाग गया। उसके पीछे तीन और लड़के पीछा करते हुए भागे आ रहे थे। एक चिल्लाया डुग्गी रुक तू आज नहीं बचेगा। तीनों लड़कों का मुंह काला हो रखा था।
अपने रूम में घुसा ही था कि बदबू से वापस बाहर जाने लगा। बगल वाले बिस्तरे पर भरकस गन्दगी थी। कमरा सिगरेट की बदबू से भरा पड़ा था। 
जैसे ही बाहर निकलने के लिए गेट खोला वही डुग्गी महाराज ने सीधे मुझे धक्का दिया और मैं बेड पर गिर गया। खुद दरवाजा बंद कर दिया और बोला गेट मत खोलियो नहीं तो मेरे साथ तू भी पिटेगा। 
और भाई साहब ने मशाल जलाई, धुंआ छोड़ते हुए मोबाइल स्क्रॉल करने लगे। तभी धुंए से परेशान हो होकर मैंने खिड़की खोल दी। डुग्गी का ध्यान नहीं गया। धुंए का भभका जैसे ही बाहर गया। तभी नीचे से आवाज आई देखो साला रूम में है पकड़ो साले को।
डुग्गी ने मेरी तरफ देखा और बोला तुझे तो बाद में देख लूंगा और जोर से वो भाग गया। रात हो गयी थी मेस का खाना खाकर घर वालों से बात की। अपने कमरे का गेट खोला तो एक बार को डर गया जैसे रूम में आग लग गयी हो। सिगरेट के धुएं का गुब्बार मुँह से टकराया। डुग्गी का

की एक आंख चारों तरफ से नीली पड़ी थी और शर्ट फ़टी हुई थी। मेरी तरफ गुस्से से देख रहा था।अब मैं रात को कहाँ जाता बैग से मलहम निकाल कर दिया। तेरी वजह से पिटा हूँ तू ही लगाएगा। भाई साहब की हेल्प की शर्ट उतरवाई पूछा उन लोगों ने क्यो मारा। ऐसी राक्षसों वाली हंसी नहीं सुनी थी। हंसते हुए बोला साले भैरवी के बारे में गन्दी बात बोल रहे थे। सालों की सिगरेट से तंबाकू निकाल कर पटाका लगा दिया मुँह जल गए तीनो कुत्तों के।
डुग्गी भाई का बचपन का प्यार थी भैरवी। उसी कॉलेज में वो भी फर्स्ट ईयर में मेरी बैचमेट थी। डुग्गी पाजी उसके चक्कर में जान भुझकर एक साल फेल हुए। क्योंकि पिछले साल उसका दाखिला इस कॉलेज में नहीं हुआ था।
डुग्गी पाजी किसी अमीर सेठ के इकलौते पोते थे। रुपये पैसे की कोई कमी नहीं थी। नीचे होस्टल में KTM खड़ी होती थी। क्लास का पहला दिन था। डुग्गी को जगाया मैंने क्लास के लिए तो जवाब 1 हफ्ते कॉलेज नहीं जाऊंगा। मैंने पूछा क्यों भैरवी के सामने सूजी आंख लेकर कैसे जाऊंगा? कॉलेज पहुंचा तो पहले ही दिन उसको देखा एक दम मोर्डन कपड़े कलाई पर गिटार का टैटू। मुँह में च्विंगम। एक प्यारी काली आंखें, धनुषनुमा होंठ, सुराही दार गरदन। हिमानी नाम था। बारहवीं में स्कूल टॉपर थी। बड़ी ही घमंडी और नकचिड़ी। खूबसूरती और टैलेंट का बेजोड़ गठजोड़ था।
40 लोगों की क्लास में हम जैसे तो उसके लिए ना के बराबर थे। स्पोर्ट्स मीट में हिमानी टेनिस में गोल्ड, मैंने 400 मीटर रेस में और डुग्गी पाजी ने शतरंज में कमाल कर दिया।
हमें दौड़ने के अलावा कुछ आता ही कहाँ था। डुग्गी पाजी कुछ भी शतरंज के माहिर खिलाड़ी थे। इयरली रिजल्ट आये तो मैं क्लास टॉपर था। हिमानी सेकंड आयी थी। टीचर पसंद भी करते थे। क्योंकि उन्ही के टाइम का मैं लगता भी था। भैरवी भी अच्छे नंबर से पास हुई डुग्गी पाजी भी लटकते हुए पास हो ही गये। हिमानी पहली बार मेरे पास आई मुझे लगा पहली बार बात करने आई है शुभकामनाएं देगी। डुग्गी पाजी साथ मे थे। वो आते ही बोली क्यों टीचरों की चापलूसी से इस बार तो टॉप कर गया। हर साल मैं ऐसा नहीं होने दूंगी। मेरे तो मुँह से एक शब्द नहीं निकला। डुग्गी ने हिमानी को हड़काया। हिमानी डुग्गी को बोली तू कम बोल नहीं तो भैरवी की पूंछ बन के जो घूमता है न,मेरे एक बार कहने पर भैरवी इतनी घांस भी नहीं डालेगी। डुग्गी पाजी भैरवी के नाम पर चुप। 
अगला साल चालू हुआ, पूरा साल हिमानी की नफरत में निकला। फिर से बेचारी हिमानी सेकंड आयी। इस बार तो लग रहा था कत्ल ही कर देगी। एक कम्पनी भी आई थी थर्ड ईयर की शुरुआत में एक प्रपोसल लेकर कि जो भी अपना बेस्ट प्रोजेक्ट तीसरे साल के एन्ड में उन्हें देगा वो उसको फोर्थ ईयर में 15 हजार का स्टाइपेंड हर मंथ देंगे और मार्किट में अगर प्रोडक्ट चल निकला, तो 2% की इयरली रॉयल्टी मिलेगी। मेरे जैसे लोन पर पढ़ने वालों के लिए सुनहरा अवसर था। सब लोग लग गए कोई किसी को बताये ही न कि कौन क्या कर रहा है। डुग्गी भाई को पैसे की कमी नहीं थी तो बड़ी बहस के बाद एक गेमिंग एनालिस्ट ऐप्प बनाने पर काम शुरू किया। हिमानी तो जैसे सेकण्ड ईयर के रिजल्ट के बाद से गायब ही थी। एक दिन रात को दोस्त की बहन की शादी में मिला क्या लग रही थी लहंगे में। पहली बार उसे ऐसे परिधान में देखा था। और हम अभी जीन्स, टीशर्ट और स्पोर्ट्स शूज तक ही पहुंचे थे। थर्ड ईयर तक आते आते डुग्गी पाजी ने कभी कभी थोड़ा बहुत पीना सीखा ही दिया था। उस रात शादी में कुछ ज्यादा ही हो गयी। और आव देखा न ताव हिमानी के पास जाकर अपने सारे अरमान खोल दिये। डुग्गी पाजी ने पीठ पर हाथ थपथपाया और बोले वह मेरे शेर कमल कर दिया आज तो, पर मैं शाबासी लेने के बाद जैसे ही मुड़ा एक ज़ोर का थप्पड़ मेरे मुँह पर आकर पड़ा। हिमानी बोली औकाद में रह फटीचर कहीं का। वो थप्पड़ से जो बात उसने बोली थी उसका घाव बहुत गहराई तक गया। मैंने कभी नहीं सोचा था कोई मुझे ऐसा कहेगा। मैं अगले चार दिन क्लास ही नहीं गया किसी का फोन नहीं उठाया। डुग्गी पाजी भी शादी के अगले दिन घर निकल गए थे। भैरवी को लगा मैन खुद खुशी कर ली है वो खुद वार्डन को लेकर मेरे कमरे पर आई और मुझे बहुत समझाया। डुग्गी के बारे में बोली देखो उसे वो जानता है कि मैं उस से प्यार नहीं करती पर भी मेरे से कितना कुछ सुनता है, पर बेशर्मों की तरह मेरे पीछे लगा ही रहता है। फिर मैंने बोला वो एक साल फेल आपकी वजह से ही हुआ था। भैरवी बोली पता है, तो तुम ही बताओ ऐसे किसी इंसान को कैसे अपना सकती हूं जो अपने करियर का ही सगा नहीं है। वो कल कुछ और करने के लिए कुछ और छोड़ देगा। उसकी इतनी अजीब लाइफ का हिस्सा कौन बनेगा। वो बाहर निकल गयी ये कह के और जाते हुए बोली कल क्लास आना। उसके जाते ही डुग्गी पाजी अंदर घुसे रोने लगे। मैंने पहली बार डुग्गी को बिलख बिलख कर रोते देखा। डुग्गी के दुख के सामने तो मेरा दुख कुछ नहीं था। डुग्गी ने बोला यार पांचवी से साथ हूँ इसके इसके लिए अगर में कुछ छोड़ सकता हूँ तो अब इसे दिखाऊंगा कि इसे पाने के लिए कुछ कर भी सकता हूँ। मेरी तो हवा टाइट हो कहीं भाई ये न कुछ कर ले। तो मैंने हिम्मत बंधाते हुए बोला कि भाई कुछ गलत कदम न उठाना। तो डुग्गी पाजी चिर परिचित अंदाज में अपने आँसू रोक कर बोले भग साले मरने से तो मुझे डर लगता है। और फिर रोना चालू कर दिया। मैं अगले दिन कॉलेज गया भैरवी से डुग्गी ने बिल्कुल भी बात नहीं की। भैरवी को कोई जैसे फ़र्क़ ना पड़ता हो। पर गजब तो तब हुआ जब हिमानी मेरे पास आई और बोली सॉरी। मेरे को विश्वास ही नहीं हुआ। और अगली लाइन ने तो मेरे प्राण ही निकाल दिए जब मैंने आयी लव यू सुना।
मुझे विश्वास ही नहीं हुआ। मैं चुपचाप उसका मुँह ताकता रहा। वो बोली अब भी गुस्सा हो हो मैंने कहा नहीं बिल्कुल नहीं। पूरी क्लास की नजर हमपर थी सब को ये जानना था कि आख़िर हो क्या रहा है। वो एक पेपर चोरी से मेरी बुक में रख कर चली गयी। डुग्गी पाजी पे रहा न जाये पूरा दिन परेशान किया क्या बोली क्या बोली बोल बोल कर। मैं होस्टल रूम में पहुंचा पर्चा चोरी से खोला उस उसका नंबर था। और नीचे लिखा था हमारे प्यार कि कसम किसी को इस रिश्तेके बारे में मत बताना। तुम्हें हमारे प्यार की कसम।
बस फिर क्या और प्यार हो ही गया। डुग्गी भाई के सोने के बाद पूरी पूरी रात बात होती। पढ़ाई लिखाई में मन ही न लगे। सॉफ्टवेयर पर काम भी करना छोड़ दिया था। डुग्गी पाजी शाम को दारू के बाद लैपटॉप और हैडफ़ोन लगाकर बैठ जाते। और यहाँ हमारा प्रेम अमर हो रहा था। थर्ड ईयर के रिजल्ट सामने आए डुग्गी पाजी ने इस बार जबरदस्त कमाल किया। सारे सब्जेक्ट में 75 से ऊपर नंबर। और मुझे टीचर्स ने बहुत डाटा 60 भी मुश्किल से पार हुए थे। भैरवी भी हक्की बक्की रह गयी थी। हिमानी ने क्लास टॉप करके दिखाया। अपने 60 आने से अधिक खुशी हिमानी के टॉप करने की थी। वो कंपनी फिर सब के प्रोजेक्ट का डेमो लेने आयी अब आप धापी में कुछ किसी तरह से अपना सॉफ्टवेयर भी तैयार किया। ऑडिटोरियम में सबने अपना प्रेजेंटेशन दिया। मेरी भी बारी आई पर जज को प्रभावित ही नहीं कर सका। बड़ा दुखी था। डुग्गी पा जी प्यार में हार गए थे। बेचारे फुल फोकस मोड में थे। गेम्स के लिए एक बेहतरीन एनालिटिक्स एप्प कम्पनियों के लिए बनाई। जीतने में पूरे चांस थे। लास्ट में बारी थी हिमानी की। प्रोफ़ेशनल लुक में क्या लग रही थी। हिमानी ने बोलना चालू किया क्या आप अपने जीवन में अकेले क्या चाहते हैं कोई आपसे प्यार करे आपकी और देखे। जी हां आपके है लवबडी बोट सॉफ्टवेयर। डेमो में उस बोटएप्प की एक कॉल रोकॉर्डिंग बजी जिसमें पूरे ऑडिटोरियम में मेरी आवाज और बोट की आवाज गूंज रही थी। सब ने मेरी आवाज़ पहचान ली थी। मैं एक बार फिर शर्म के मारे बाहर भागा। डुग्गी और भैरवी मेरे पीछे पीछे मेरे साथ होस्टल रूम तक आये। मैं बिलख बिलख कर रो रहा था। मैंने कभी नहीं सोचा था हिमानी इस तरह मेरे साथ खेलेगी। भैरवी और डुग्गी ने बहुत समझाया। मैंने दोनों के सामने हाथ जोड़े और उन्हें आश्वासन दिया कि मैं कुछ गलत नहीं करूंगा बस वो मुझे कुछ देर के लिए अकेला छोड़ दें। अगले दिन में क्लास में गया और भैरवी और डुग्गी मेरे पास ही बैठे थे। हिमानी पास आकर बोली सॉरी यार एवरीथिंग इस फेयर इन लव एन्ड वॉर। और भैरवी उसको जवाब देने ही वाली थी कि मैंने उसको रोक लिया। उस कंपनी ने हिमानी के ऐप को चुन लिया था। और डुग्गी के सॉफ्टवेयर को भी अपनी आर एन्ड डी टीम को इस वायदे के साथ सौंप दिया कि अगर प्रोडक्ट मार्किट में चला तो डुग्गी की रॉयल्टी पक्की थी। 
चौथा साल शरू हो चुका था। अब प्यार में हारने को कुछ नही बचा था। बचा था तो सिर्फ प्रतिशोध और आगे बढ़ने वो आग जिसे प्यार की चकाचोंध ने हल्का मर दिया था। किताबों से आशिकी बढ़ चुकी थी। क्लास बहुत कम जाता था। होस्टल के रूम में ही रहता था। क्योंकि क्लास जाता तो उसे हंसते हुए देखता तो एक ही शिकायत निकलती दिल से कि क्या मैं ही मिला था। पूरी क्लास के लफ़ंडरों ने मजनू चाचा नाम रख दिया था। 
पर दिल को तस्सली देता था कि इन सब को जवाब मिलेगा।
कैंपस प्लेसमेंट के दिन चल रहे थे। सभी ने भाग लिया। कंपनीस ने भी घोषणा की कि फाइनल रिजल्ट के दिन ही पैकेज डिसाइड करके रिक्रूटमेंट लेटर मिल जाएगा। चौथे साल के रिजल्ट आये। डुग्गी भागते हुए मेरे पास और झकझोर के रख दिया बोला पार्टी आज मेरी तरफ से। मुझे लगा डुग्गी भाई ने लगता है टॉप ही कर दिया। तो मैं उन्हें बधाई देने लगा। डुग्गी भाई बोले अबे गधे तूने यूनिवर्सिटी टॉप किया है। मेरा बहुत ही हल्का फुल्का रिएक्शन था। डुग्गी पाजी बोले क्या बात है खुश नहीं है चल तो ये सुन हिमानी क्लास में थर्ड आयी है। मैं खुश हो के थोड़ा हंस दिया फिर पूछा डुग्गी भाई तुम सेकंड हो क्या? अरे नहीं यार भैरवी सेकंड आयी है। पर ये तो पहला धमाका था। 
कंपनीज ने पैकेजेस की लिस्ट निकाली। मुझे न्यूयॉर्क में पोस्टिंग और 1 करोड़ 92 लाख का अब तक का सबसे बड़ा पैकेज मिला था। डुग्गी भाई 1 करोड़ 35 लाख के पैकेज में ऑस्ट्रेलिया के हो गए थे। भैरवी ने भी 1 करोड़ 10 लाख के आस पास का पैकेज ग्रैब किया और ऑस्ट्रेलिया में ही पोस्टिंग मिली। नकचिड़ी हिमानी को 80 लाख में चेन्नई की पोस्टिंग मिली। वो भी ये कह कर घमंड में ठुकरा दिया कि इस से कहीं ज्यादा उसके प्रोडक्ट की रॉयलटी होगी।
पर अभी तो असली खेल होना बाकी था।
हिमानी के उस ऐप पर किसी ने केस कर दिया था। आरोप ये था कि हिमानी ने बिना किसी व्यक्ति के मर्जी के बिना उसकी वॉइस और बिहेवियर डेटा यूज किया। कंपनी ने बदनामी के चलते इनवेस्ट करने से हाथ खींच लिए और डुग्गी बाबू का बीटा वर्शन सफल रहा और दो परसेंट की रॉयल्टी भी उन्हें मिली। हिमानी ने मुँह की खाई थी। पूरे कॉलेज में बदनाम हो गयी थी। टीचर्स और प्रोफेसर्स ने लताड़ लगाई। कॉलेज ने छवि खराब करने के लिए हिमानी से लिखित में माफी लिखने को बोला।
भैरवी, डुग्गी और मेरे पास आयी दोनों को बधाई दी। डुग्गी भाई उठ कर चल दिये। भैरवी ने मुझसे कहा कि उसको बोल देना आज सूट में अच्छा लग रहा है।
मैं डुग्गी के पास गया पूछा क्या हुआ बात तो कर सकते थे। एक ही शहर में सेटल हो रहे हो दोनों तो भी बात नहीं करोगे? डुग्गी पाजी बोले क्या बात करनी जब मैं उसके लायक नहीं। मैंने बोला पर उसने तुम्हें अपने लायक बना कर छोड़ा। डुग्गी पाजी बोले कैसे ? मतलब, कहना क्या चाहता? उसने ऐसा क्या किया?
मैंने बताया जिस दिन तुमने भैरवी की बातें सुनी थी। याद है? हां याद है। जब तुम होस्टल के नीचे आये थे तो तुम्हारी बाइक आवाज भैरवी को आ गयी थी। वो जानती थी कि तुम बाहर से सब सुन रहे हो। और तुम्हारे सॉफ्टवेयर के लिए कुछ अपग्रेडेड ड्राइवर और फर्मवेयर तुम्हे चाहिए थे जो कि तुम्हें यहां नहीं मिल रहे थे। वो भी भैरवी ने अपने एक दोस्त से बेंगलोर से मंगवाये और मुझे ला कर दिए थे तुम्हें देने के लिए।
डुग्गी पाजी बोले तो पहले क्यों नहीं बताया। कैसे बताता भैरवी नाम सुन कर ही तुम गुस्सा हो जाते और पूरी पूरी रात शराब पीते। भैरवी ने भी कुछ बताने को मना किया था। बोली अगर मेरा प्यार भी उसकी तरह सच्चा है तो हम दोनों एक दिन जरूर एक दूसरे के हो जाएंगे।
आज कॉलेज छोड़े 5 साल हो गए हैं। डुग्गी और भैरवी के जुड़वाँ बच्चे हो चुके हैं और दोनों का पहला बर्थडे है। एयरपोर्ट पर अपनी फ्लाइट का वेट कर रहा हूँ।


अंक -3 कुछ नहीं कहना

सामने वाला घर था उसका। जब से होश संभाला था, कभी बिना हिजाब के उसे देखा ही नहीं था। दोनों की बालकनियों में इतना अंतर था कि आना जाना कर सकते थे। खानदान की दुश्मनी की वजह से आना जाना तो दूर बोलचाल भी नहीं थी। हमारे बीच दूरियों का ये भी एक बड़ा कारण था।
दोनों एक ही स्कूल के एक ही क्लास में थे। एक ही टाइम पर निकलते थे। पर कभी कोई बातचीत ही नहीं थी। मेरा कभी उस पर ध्यान ही नहीं जाता था। वो होते हुए भी न के बराबर थी। एक दिन बेचारी की चुन्नी स्कूल के रास्ते में ही साईकल की चैन में फंस गई। कोई मदद करने आगे नहीं बढ़ा। उल्टा सारे लड़के उस पर हंसने लगे। लड़कियों ने मदद की पर चुन्नी फटने के डर था। उसकी आँखों में आंसू आ गये। जो किसी को नहीं दिखे। अब मुझसे नहीं रहा गया। मैं भागता हुए गया और उसकी चैन उतार कर चुन्नी निकली फिर चैन चढ़ा दी। जैसे ही सोचा शुक्रिया कहेगी। मैं उसकी आँखों में देखा, पर उसने पलकें इस अंदाज झुकाकर उठायी कि मेरे अलावा कोई शुक्रिया कबूल ही नहीं कर पाया। मैंने भी सिर हिला दिया। जबकि और लड़कियां बोलीं थैंक्स तो बोल दे।
मैं जैसे ही अपने ग्रुप में लौटा तो, जो तंज की बारिश हुई वो पूरे दिन नहीं रुकी। शायद से ये बात सच है कि प्यार खुद ब खुद हो जाता है। संडे का दिन था। मैं अपनी बालकनी में ही चाय पी रहा था। तभी सामने वाली खिड़की में किसी लड़की को बालों को तौलिये से झटकते हुए देखा। मैं एक बार को तो पहचान ही नहीं पाया। 
वो जुल्फों को जोर से झटकना मुझे पागल करे दे रहा था और फिर क्या प्यार हो गया मुझे उस लड़की से। उसका ध्यान अचानक से मेरी तरफ आया। मुझे देख कर चोंक गयी। तोलिया हाथ से छूट गया और मुँह पर हाथ रख कर भागते हुए झट से खिड़की के पर्दा गिरा दिया।
मैं ध्यान फिर भी पर्दे हटा नहीं, मुझे लगा पर्दे से छुप कर मुझे कोई देख रहा है। जैसे ही नजरें मिली पर्दा फिर से खीच गया। दिन बीत रहे थे, मोह्हबत आंखों में ही जंवा होती रही। हमारी कभी बात ही न होती। जब आमना सामना होता वो कुछ नही बोलती। वो हया और तहजीब की इमारत थी। पारवारिक मूल्य उसके लिए हमारे प्यार से बढ़ कर थे। इशारों में दूर से बात होती। मैं भी कभी जमाने के डर से उस से कुछ कह नहीं पाता था। डरता था कि कहीं बात घर तक न पहुंच जाये। मेरे भी घर में दोस्ती यारी में किसी को पता नहीं था। बारहवीं के बोर्ड भी निकल गये। आईआईटी की तैयारी में पूरी गली लगी पड़ी थी। अब स्कूल में मिलना का तो मतलब नहीं था। पास की 
पूरी गली में सिर्फ मेरा एआईईई में अच्छी रैंक आयी थी। सूरत एनआईटी मिला था। जाना जरूरी था। उस रात वो पूरी रात पर्दे के पीछे बैठ कर रोती रही। मैं भी क्या करता मजबूरी थी। जीवन में किसी लायक कुछ बनता तभी उसका हाथ मांग सकता था।
अगले दिन ऑटो आया ट्रैन का टाइम हो रहा था। मैं बार बार उसकी बालकनी की तरफ देखे जा रहा था। पर वो दिखी नहीं। ऑटो वाले ने बोला बाबू चलना है कि नहीं। दिल पर पत्थर ले कर निकला घर से। रास्ते में जब गली से बाहर निकल तो ध्यान गयी एक दुकान से मुझे कोई डबडबायी आंखों से विदा कर रहा है। ऑटो वाले से रुकने को बोला, मैं ऑटो से दुकान की तरफ बढ़ा ही था कि उसने डर के मारे नजरें घूम ली। और मैं भी फिर वापिस ऑटो में बैठ गया।
मैंने अपनी अंगूठी ऑटो में बैठते हुए वही गोरा दी। उसने ऑटो के हटते ही झट वो अंगूठी आकर उठा ली। दोनों एक दूसरे को देखते रहे। जब तक एक दूसरे की आंखों से ओझल नहीं हो गए।
पहला सेमेस्टर मेरे लिए पत्थर की तरह था। कभी कभी तो मन करता सब छोड़ कर भाग जाऊं। 
किसी तरह सेमेस्टर पूरा हुआ आखरी पेपर की शाम की ही ट्रेन की टिकट करवा ली थी। घर सुबह तक पहुंचा। पूरी गली में रंग बिरंगी झालर से सजी थी। पहली बार गली को इतना सजा देखा था। घर पहुंचा तो पूछा घर वालों से आखिर बात क्या है! पता लगा आज उसकी शादी थी। मेरे तो पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी। मैं भागते हुए अपने कमरे में गया अपनी खिड़की के पर्दा खोला तो अपनी खिड़की पर ही मेरी तरफ देखते हुए वो सिसक सिसक कर रो रही थी। मेरे भी आंसू और न रुके बांध टूट चुका था। मैंने इशारा किया आखिर क्यों? क्या मेरा वेट तो करती। उसने डबडबायी आंखों से मेरे हाथ जोड़ लिये। मैं समझ गया उस पर क्या बीती होगी, उस से तो पूछा ही नहीं गया होगा। तभी उसके कमरे में कोई आ गया। उसने झट से पर्दा बन्द कर लिया।
मैं काफी देर उसका वेट करता रहा पर्दा न हटा। नीचे आ गया पता लगा शादी में बुलावा है। मैं घर वालों पर इतब गुस्सा हुआ मैंने पूछा क्या हुआ उस खानदानी दुश्मनी का, अब तक तो आना जाना भी नहीं था। तो फिर कैसी दावत कैसा बुलावा? जवाब मिला वक़्त सारे जख्म भर देता है। आखिर कब तक ये सब चलता रहना तो अगल बगल ही है। मैं बिना कुछ कहे कमरे में आ गया अपना कमर बन्द कर लिया। थोड़ी देर में उसके कमरे से गीत की आवाजें आने लगी। ढोलक की थाप मेरे दिल को झकजोर दे रही थी। औरतों की बोलियां पूरे बदन में चुभ रहीं थी। मैंने खिड़की के पर्दा थोड़ा सा खोला तो उसके हाथ उसकी बहनों ने पकड़े हुए थे। उसका मेकअप हो रहा था वो शीशे में मेरी खिड़की के खुले आधे पर्दे को देख सकती थी। मैं भी क्या कर सकता था। उसके दुल्हन के लिबास में सजते हुए देख रहा था। उसकी बहनें बार बार मांग टिका उसके उसके सर पर रखती तो वो उसे जमीन पर फेंक देती। इतने में किसी ने उसे जोर का थप्पड़ जड़ दिया। मैंने खिड़की के सरिये को इतनी जोर से खींचा कि वो उखड़ ही गया। मेरे हाथ में चोट लग गयी। किसी और का ध्यान नहीं गया पर उसने अपने शीशे में देख लिया और चुपचाप तैयार होने लगी। 
सब लोग उसके आंगन में इकट्ठा थे। न चाहते हुए भी खुद को रोक न सका। आंगन के एक कोने में खड़ा उसकी और अपनी मजबूरियों के तमाशे का जश्न मनाते हुए सबको देख रहा था। तभी उसका बुलावा गया। और कमरे से रोने चीखने की आवाजें आयी। मेरा तो दिल दहल गया। मैंने सीढ़ी से दो लोगों को उसे गोद में लाते हुए देखा वो बेसुध थी। आंखे आधी खुली हुई थी। उसके हाथ खून से लथपथ थे। मेरे बगल से निकलते हुए किसी ने कहा अरे भाई सहारा दो थोड़ा मैंने बिना कुछ सोचे समझे उसके सर के नीचे हाथ लग दिया।उसके उंगली पर मेरी नजर गयी तो उसने मेरी अंगूठी पहन रखी थी। मैं उसको उठाये हुए उसकी उन्ही आंखों में देख रहा था। उसके चेहरे पर अजीब सी हंसी थी। जैसे सारे जमाने पर तंज कस रही हो। वो मेरी आंखों में लगातार देख रही थी। उसे उठाये हुए हम तीन लोग बरामदे से बाहर आते हुए कार की पिछली सीट पर डालने लगे। अचानक से उसकी गर्दन मेरी तरफ को मुझे देखते देखते झूल गयी। वो जीत गयी, जमाना हार गया था। उसकी आंखें खुली थी। वो जीत का मानों जश्न मना रही हों। मैंने उसकी आँखों की पलकों को अपने हाथों से बंद कर दिया, ये जताते हुये कि हाँ तुम ही जीती हो और ये सब हार गये। 


4) अठारह दुनी छत्तीस
गज़ब की खूबसूरती है। अपनी प्रोफाइल के कवर पर क्या खूबसूरत फोटो लगाई थी। पूरी प्रोफाइल कहीं दूर दराज की फोटो से भरी पड़ी है। लगता था मोहतरम को घूमना और फोटोग्राफी बहुत पसंद है। पर अपनी फोटो कहीं भी नहीं लगाई है। हर जगह बस बाहें फैलाए लम्हों को कैद करने की कोशिश, वो चेहरा छुपा कर।
हम्म रिक्वेस्ट भेजना तो बनता है, और प्रोफाइल पर नाम जस्ट क्लिकी कौन रखता है।
पर कोई नहीं सुबह देखेंगे।
मेट्रो में आज बहुत भीड़ है, मंडे जो है। लोगों के सर से सैटरडे का हैंगओवर अभी तक नहीं उतरा है। इसी धक्का मुक्की में कश्मीरी गेट पर घुसते हुए एक वकील सहायबा ने हुए क्या धमकी दी एक मनचले को। बोलती हैं ऑफिस पहुंचने नहीं दूंगी और घर जाने नहीं दूंगी, नहीं तो ठीक से हो जा। बेचारा काले कोट के आगे क्या बोलता।
पर उसकी हरकते में भी झिलमिल स्टेशन से देखता आ रहा था। सीट खाली होते हुए भी यमराज के सींग जैसे हेडफोन कान पर लगा कर गेट पर ही खड़ा हो गया था।उसने शायद मैडम की दोस्त को कुछ कह दिया था। 
आवाज में मिठास के साथ कड़क मिजाज का तड़का गजब ही था। भीड़ की वजह से चेहरा तो नहीं दिखा।
पर छोड़ो, अरे हां रात वाली को देखें रिक्वेस्ट एक्सेप्ट हुई की नहीं।
अरे गज़ब एक्सेप्ट हो गई और मैसेज भी आया था। 
लिखा था, 
तेरे जैसो को अच्छे से जानती हूं।
अभी तू नाम पूछेगा फिर फोन नंबर।
और फिर प्यार भरी बातें करेगा।
फिर मिलने को बोलेगा।
फिर तुझे प्यार हो जायेगा।
और प्यार की दुहाई दे कर तेरा मतलब निकला तो ठीक नहीं तो शादी तो तुझे वैसे भी नहीं करनी होगी।
और हो सकता है कि तू शादीशुदा हो भी।
ठीक से हाेजा नहीं, तो तीस हजारी में नाक रगड़वा दूंगी।
जवाब देने की भूल भी मत करियो।
तेरे मैसेज पढ़ते ही तु ब्लॉक हो जायेगा।
और ये क्या सही में ब्लॉक।
ये भी कह रही है "ठीक से हो जा"…
बड़ा कॉमन से हो गया है क्या डायलॉग।
एक मिनट वो वकील लडकी। तुरंत सीट से खड़ा हुआ अरे कहां गई। प्रताप नगर आ गया था। 
सही में क्या इत्तेफाक था। शायद यही लड़की थी।
भाई कुछ भी हो पर इसकी आवाज़ से प्यार तो ही गया था। अब या तो इसे पाने की कोशिश करनी है या फिर जेल ही जाना है। फिर क्या अपनी सारी स्किल इसे फिर अप्रोच करने में लगा दी। नई प्रोफाइल बनाई उस पर एक बोर्ड पकड़ कर फोटो लगाई और रिक्वेस्ट भेजी। बोर्ड पर लिखा था। "अगर तुमने जैसा लिखा था वैसा निकला तो मैं खुद तीसहजारी कोर्ट में माथा टेकने आऊंगा।
इस बार पूरा महीना बीत गया न तो रिक्वेस्ट एक्सेप्ट हुई n ही कैंसल। दूसरा महीना भी निकल गया। 














गुरुवार, 8 सितंबर 2022

पत्नी परम धर्म

पत्नी परम धर्म
विवाह उपरांत मुझे आत्मज्ञान हुआ,
नेत्र खुल गए मेरे, मार्ग मेरा परमार्थ हुआ।
जब हुए तुम्हारे रौद्र विकट रूप के दर्शन।
तब जाके मेरा सौभाग्य चरितार्थ हुआ।

जीवन मे निकटता ज्यों ज्यों बढ़ी,
मेरी तो विकटता भी त्यों त्यों बढ़ी।
हे प्रिये, तुम अद्भुत हो, अद्वितीय हो,
तुमसे कैसा तर्क? तुम अविजित हो।

तुम अति गुणवती, बलवान हो।
सारी कलाएं तुमसे विद्यमान हैं।
मेरी विधि तुम, तुम ही विधान हो।
मेरा तुम्हें शास्टांग प्रणाम है।

हे प्रिये, तुम जितनी सुंदर हो।
ठीक उतना ही मैं बुद्धिमान हूँ।
विवाह उपरांत सत्य विदित हुआ।
तुम ही अतिकुशल सर्व शक्तिमान हो।



बुधवार, 7 सितंबर 2022

मानस उद्भव

महापिंडो का महापिण्डों से मर्दन,
ब्रह्मांड ने किया विनाशकारी कृन्दन।
महाप्रलयंकारी महाविस्फोट हुआ,
तब जाके सौर मंडल प्रस्फ़ुट हुआ।

सूर्य का प्रज्वलन, नवग्रह संस्कार हुआ।
मात्र पृथ्वी पर पंचतत्व का उद्गार हुआ।
प्राकृतिक साम्य से वातावरण हुआ प्रणीत,
धरती माँ का जीवन स्वप्न साकार हुआ।

जल से थल पर, थल से नभ पर,
जीवन का उद्भव फिर प्रचार हुआ।
विकसित हुए जीव जंतु और मानव,
जीवन से ही जीवन का प्रसार हुआ।

प्रकृति की विकास लीला भी परम् है।
सभी जीवों की श्रंखला में मानव चरम है।
बाकी जीवों का विकास ही सीमांत है।
जीवों में मात्र मानव की सीमा अनन्त है।












शनिवार, 18 जून 2022

नई दिल्ली में मिली थी

ये प्यार था, दो दिलों की हेरा फेरी थी।
ट्रेन की पों पों,भीड़ की जोराजोरी थी।
याद करो जब नई दिल्ली में मिली थीं।
न मैंने सुन न चाहा,न तुम कुछ कह रही थीं।

आलू पूरी की,तो समोसे की गरमाहट थी।
भरी गर्मी में भी दो दिलों में सरसराहट थी।
था तुमसे मिलना शुद्ध प्रचुर नई दिल्ली में।
भले खाने के हर सामान में मिलावट थी।

वेटिंग टिकट थे,हमें सीट की थी कहाँ फिकर।
मेरे दिल में दिमाग में था बस तुम्हारा जिकर।
याद करो जब तुम हमसे नई दिल्ली में मिलीं थीं।
जब अनजान नजरें एक दूसरे को देख फिसलीं थी।।

ऊपर वाले ने भी क्या चुन कर हमें मिलवाया था।
न तुम कुछ कह पाई थीं,न मैं कुछ सुन पाया था।
क्या बेहतरीन जोड़ी नई दिल्ली स्टेशन में मिली थी।
तुम बेचारी गूंगी थी, मेरे कानों पर सुना साया था।